विकसित नहीं विक्षिप्त हो रहे हैं हम।

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राम राम भाइयों

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(pixabay image)

वैसे भारत के नेता तो विश्वगुरु होने का दावा ऐसे करते हैं जैसे कि बस दुनिया भर के अमीर आकार हम को अपना गुरु बनाने के लिए मरे जा रहे हों। एक तरफ अमीरों के घर हैं तो उसके बाहर ही कचरे से भरी सड़कें दिखती हैं। चारों और कूड़ा, कचरा, भयंकर भीड़ और प्रदूषण के दर्शन होते हैं। एक तरफ कुछ लोग अमीर होते जा रहे हैं दूसरी और ऐसी भीड़ है जो मुफ्त की योजनाओं के सहारे ज़िंदगी बिता रही है। कहीं कोई प्लानिंग नहीं, कोई अनुशासन नहीं। बस बिल्डिंग बनानी है, रोड बनानी है। लेकिन इसमें भी कोई प्लानिंग नहीं दिखती। चारों और अव्यवस्था नज़र आती है। इसीलिए अमीर देश छोडकर जा रहे हैं। लेकिन जो आम आदमी भी बाहर जा रहे हैं उनमें से कई लोगों को सिविक सैन्स ही नहीं हैं। बाहर जाकर भी गंदगी ही फैलाते हैं। न सरकारों के पास कोई योजना है न जनता के पास कोई इच्छा।

विकसित नहीं विक्षिप्त देश बन रहा है। बस।