सच्चाई!Truth!
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हर हर महादेव! |
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कारण नहीं पता, पर ना जाने क्यों आज हिंदी भाषा में लिखने की ईच्छा हुई!
पहले भी मैंने अपने सहकर्मियों के साथ एक बात साझा की थी, और वह बात ये थी के मैं जब जब एकांत में रहती हूं और कुछ मनमे अकेले बड़बड़ाती हूं तो वह ज्यातातर हिंदी भाषा में ही चलती हैं!
वैसे मेरी मात्री भाषा तो बंगला है, पार हिंदी में अपने मन में कैसे और क्यों मेरी भाषा बदल जाती है इसका कारण आजतक मुझे पता नहीं चला!
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जिंदगी के फलसफा कुछ यूं चला,
ना हम खुदके हो पाए और न कोई अपनाया!
पर एक दोस्त ने कभी दमन नहीं छोड़ा
वह और कोई नहीं मेरे ही आंसू थे,
जो आजतक सूखे नहीं, आज भी
अंधेरे में मेरे तकिए को सब सच पता हैं!
इंसान से लगाव बाकी नहीं रही
जो भी आए, अपना सौदा किए और चल दिए!
हिसाब करना मेरा काम नहीं,
अब सब एक हाथ में छोड़ दिया!
आपने लक्ष्य अब बदल दिए,
भूलना चाहती हूं किसने क्या किए!
हिसाब मेरा हमेशा से ही कच्चा था,
इसलिए शायद विश्वास के सहारे लुट गई!
दर्द से गुजर रही हूं, पर शिकायत नहीं हैं
मिट्टी तपकर मजबूत बनती हैं;
मैने जो खोया वो कभी मेरे नहीं थे
अगर वह मेरे होते तो शायद वो कभी नहीं खोते!
एक सत्य जो जीवन के ईश पड़ाव में शिखा
अगर भरोसा करना ही है तो ईश्वर पे करना चाहिए
इंसान तो कभी भी पलट जाती हैं,
बस ईश्वर एकमात्र वादे के पक्के होते हैं!
गलती, और गलत इंसान
सबसे ज्यादा सिख देके जातें!
ईश्वर उन्हें भेजते हैं कच्चे मिट्टी को पकाने के लिए
ईश्वर उन्हें भेजते हैं अपने आप को
सशक्त बनाने के लिए!
यह उपलब्धि मेरी है,
जिसने अब इंसान की उम्मीद
का दामन छोड़ दी हैं!

शायद मैं नहीं चाहती थी के आज मैने जो लिखा हैं वो ज्यादा लोगों के पास पहुंचे, क्योंकि इनसान ज्यादातर अपने सोच से हर शब्द के अपने मतलब निकल लेते हैं, जो कभी कभी बहुत ज्यादा चुभती है!
अब बस! खत्म करना हैं इंसान से संबंध, और सही दिशा में अपनी सोच लगानी है।
जबतक इंसान से लगाव रहेगा, दुख के सिवा कुछ हाथ नहीं आनेवाली हैं। इंसान के भीड़मे सबसे ज्यादा बिकता है ईमान, उसके बाद बिकती हैं सम्मान!
जेब में कितना? बैंक खाते में कितना? आगे चलके कितना लाभ होगा इनके आधार पर सब कुछ तय किया जाता हैं!

बेईमान कहा तो बुरी बन गई? क्या बेईमानी सिर्फ पैसा और शरीर से संबंध रखता है? सम्मान, समय के चोरी, व्यबहार, और इज्जत में जब असमानता दिखाई दे, बहाना जब हथियार बन जाए आर्थिक कारणों से, क्या उसे बेईमानी नहीं कहा जाता?
जब इंसान की कीमत जेब के वजन से तोला जाता हैं तो उसे बेईमानी कहा नहीं जाता?
में उन तमाम इंसान से पूछना चाहती हूं, जब कोई इंसान किसी को अर्थ के आधार के नजरिए से सम्मान करे,
यानी कि जब इंसान के पास अर्थ हो तो सर पर बिठाए, और जब मांगने की कगार पर आ जाए तो वह सम्मान बदलकर सिर्फ बहाना बन कर रह जाए, तो क्या उसे बेईमानी नहीं कहते?
ऐसे कई सारे सवाल हैं, पर पूछती हूं सिर्फ ईश्वर से!इंसान की सोच इतनी बदबूदार हो चुकी हैं घिन आने लगीं है!
और बदबूदार इंसान हो, या रिश्ते जितने दूर रहे उतने ही अच्छे!


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