Farmet

in #nnice8 years ago

खौलकर उठती मरोड़,
सूखती जीभ, बंधे गले,
और रह-रहकर चौंकते हाथों में
जो विचार अंतिम अरदास हैं,
वो चाहते हैं कि भाप हो जाएं
ऐसे नायक, सेवक प्रतिनिधि
जिनके रहते आत्महत्या करे अन्नदाता
शीशे की तरह टूटकर बिखर जाएं
ऐसी आंखें जो देखती रहीं मौत को लाइव
सूख जाएं दरख्त
कागज़ों की तरह फट जाएं राजधानी की वे सड़कें
जहाँ मरने के लिए मजबूर होकर आए एक किसान
किसान मरा करे, देश तमाशा देखता रहे,
ऐसे लाक्षागृह की सत्ता लहू के प्यासी नीतियां
और लड़खड़ाते गणतंत्र में आग लगे.
मुर्दा हो चुकी कौमें हत्यारी सरकारें
और देवालयों के ईष्ट सबका क्षय हो.
प्रलय हो!