'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी .........shridhi (47)in #poem • 3 years ago 'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी हवा को छूते हुए बीत ही जाती हैं बसंत की शामें|